कह नहीं सकते बेचैन साँसे क्यों है
जो आग जल रही है इधर वो उधर भी क्यों है
लब खामोश है आख थोड़ी नम सी है
कुछ न कुछ तो हुआ है दिल उलझन मे है
वो भी कुछ तनहा से पाते है …
पर इस भीड़ मे तनहा खुद से कुछ हम भी है
रातो मे उनके शामिल जो हम है …….
वो भी कुछ मेरे खवाबो मे क्या कम है
डरते है हम ज़माने से इतना फिर क्यों ..
जब की बात भी हमारे जहन मे हर दम ये है …"
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