Friday, September 25, 2009

कह नहीं सकते बेचैन साँसे क्यों है

कह  नहीं  सकते  बेचैन   साँसे  क्यों  है
जो  आग  जल  रही  है  इधर वो  उधर भी   क्यों है
लब   खामोश  है  आख  थोड़ी  नम सी है
कुछ  न  कुछ  तो हुआ  है  दिल उलझन  मे है
वो   भी  कुछ  तनहा  से  पाते   है  …
पर इस  भीड़   मे  तनहा  खुद से  कुछ  हम भी  है
रातो  मे   उनके  शामिल  जो  हम   है …….
वो  भी  कुछ  मेरे  खवाबो  मे  क्या  कम  है
डरते  है  हम  ज़माने  से  इतना  फिर क्यों ..
जब  की  बात  भी हमारे  जहन  मे  हर  दम  ये है …"

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