Friday, September 25, 2009

तन्हाइयो मे घुटता हु

तन्हाइयो  मे   घुटता  हु 
धुएं  का  कश  ले  ले  के
फिर  भी   ये  जान  जाये  न  तो
तू  ही  बता  बिन शराब  कोई  कैसे  रहे
प्यार  का  न  चढे  रंग  कोई  अब 
तू  भी  कहा  जो  संग   सही
खुद  को  ढूढता   तू  काफ़िर  बन  जो
तू  ही  बता  जिंदगी  ता -उम्र  नफरतो  मे  कैसे  कटे
निकल  रहे  है  जो  धूम  से 
मेरे  अरमां  लहू  बन  के  अब  तो
फिर  भी   तुझी  मे  दिल  सराबोर  है  यु
तू  ही  बता  दिल  जज्ब ही  पीर   बन  कैसे  पिए
नेकी  की  अब  न  कही  पूछ  ह ..
खुध्ग्रर्ज़ी  का  अब  आलम  है  वो 
इसका  सिला  दिल  मे  धफ्हन  कर  मै  अब  जी  रहा
तू  ही  बता  ये  पीर  संग  बुतपरस्ती  कैसे  सहे
मुफ्त  लुटाता  हु  खुदी  को  मसक 'ऐ  गुबार  जो
तुने  लूटा  कुछ  इस   तरह  से  जो
अब  बेमोल  मै न  बेमोल  है मेरी  वफ़ा 
तू  ही  बता  बिन  प्यार  कोई  कैसे  जिए
सोचता  हु   किस  गली  किस  सहर  जाऊ
हेर  सास  हर  घडी   बस  लगी  तेरी
 खुद  से  भागता  मैं  फिर  रहा
तू  ही  बता  काफ़िर  मस 'ले  हाल  मे   कैसे  रहे !

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