आप के हुस्नो इबादत में दुबे है हम कुछ ऐसे ;
की अब दुनिया क्या ,ज़न्नत भी बुरी लगे है हमें ;
तू मानती नहीं ये तेरी खुसबू है जालिम ;
जो हर सांस में रमक बनके महकाए है हमें ;
तू सोचती होगी मेरे बगैर जी लेगी कभी ;
यही बात तो बन नासूर रात दिन रुलाये है तुझे ;
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